तेरे बिन जिन्दगी बेकार सी लगती है
बंद दुकानों की बाजार सी लगती है
सुनसान सा सारा जहाँ होता है
तेरा साया भी रोशनी में सोया होता है
मेरा दिल उदास कहीं खोया होता है
इंजन भी पटरी से उतर रोया होता है
तन्हाईयाँ यूँ ही नहीं डसतीं मुझे
ये तेरी बेरुखी का सिला होता है
यूँ ही नहीं क़सीदे लिखते हम तुझ पर
और ना ही हम शायर बने खुद बा खुद
टूटी कलम को तेरी याद में भिगोया होता है
मेरा दिल हरदम तेरी याद में खोया होता है
कैसे मनाएं और कैसे समझाएं उसको
कि चाँद निकलने का एक समां होता है
जरा सोच उसका क्या होगा
जिसका हर साँस तुझे देखने से रवां होता है
........मोहन सेठी 'इंतज़ार'
No comments:
Post a Comment