Friday, 6 February 2015

विश्वास .......


उड़ तो पड़ा
मगर दिखता नहीं
कोई एक पेड़ सुहाना
जिसे मैं अपना दोस्त बना लूँ
तिनका तिनका बीन कर
एक घोंसला जिस पर बसा लूँ
जीवन उसके साथ बिता लूँ
अभी विश्वास नहीं किसी पर
क्या है उस पेड़ के जेहन में
कोई सर्प तो नहीं रहता उस पेड़ पर
जो रात अँधेरी में डस जाये मुझे !
क्या पेड़ बचा पायेगा मुझे
और मेरे गुलिस्तां को
उन अंधेरों और तूफानों से
या झुक जायेगा उनके सामने
और बिखरने देगा तिनका तिनका
मेरा घर बदहवासी में

मुझे विश्वास चाहिए
अगर तू है पेड़ मेरा
तो मुझे दिला भरोसा कि
मैं सुरक्षित हूँ तेरी बाँहों में
और तू नहीं टूटने देगा
मेरा ये विश्वास ....
                                    ........इंतज़ार
             

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