Wednesday, 4 February 2015

बहते रहना ही तो जीवन है........


दुखों का समुद्र आ गिरा
बेचारी नदी पर
डूब गई.... दब गई
सांसें भी घुट गयीं
दर्द बेहिसाब दिये उसने

मगर ज़हरीला समुद्र अपने आप
छिन्न-भिन्न हो गया
कुछ आसपास तक पहुंचा
कुछ धरती ने सोख लिया
और नदी रोती बिलखती
बहती रही
आगे और आगे ....
अपने दोकिनारों के सहारे
फिर एक बार शांत धारा सी
ज़हर समेट बह निकली

बस एक ही सहारा था
उसका अपना दोकिनारा....
फिर एक दिन जब
ख़ुशी के समुद्र में जा समाई
तो जीवन सम्पूर्ण हो गया उसका !
हर नदी आखिर अपने समुद्र से
मिल ही जाती है
बशर्ते कि रहे बहती वो !
अगर निराशा और क्रोध में
अपने ही दोकिनरों को
टकरा टकरा कर तोड़ देती है
तो बिखर जाती है
और सोख ली जाती है मिट्टी में !

दोकिनारों के साथ
हर हाल में
बहते रहना ही तो जीवन है ....
                                          ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'

  

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