Saturday 30 May 2015

फ़साद ........


काश ये दिल ही ना होता
फिर ये एहसासों का फ़साद ना होता
यूँ हर कोई दुनियाँ में
इतना बर्बाद ना होता !

ना ये टूटे हुए दिल होते
ना मैं लाचार होता
बस एक तीरंदाज़ होता
भूख तो भूख होती
इस भूख का भी
भोजन सा अंदाज़ होता !

ये मेरे बस में कहाँ
कि ये सब बदल डालूं
अगर कर सकता
तो क्या मैं ख़ुदा ना होता
और अगर मैं ख़ुदा होता
तो इतना लाचार क्यूँ होता
तू मेरी राधा और मैं तेरा मोहन ना होता !!

                       ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'


Wednesday 27 May 2015

अच्छा लगा ........


तेरी चाहत में
सारी उम्र गलाना अच्छा लगा !
ना पा कर भी
तुझे चाहना अच्छा लगा !
लिख लिख के अशआर
तुझे सुनाना अच्छा लगा !
सच कहूँ तो मुझे
ये जीने का बहाना अच्छा लगा !!

तेरा दुप्पट्टा खिसका कर
चाँद की झलक दिखाना अच्छा लगा !
पास से निकली तो
हलके से मुड़ के तेरा मुस्कुराना अच्छा लगा !
बदली से निकल कर आज
चाँद का सामने आना अच्छा लगा !!

मिलने नहीं आयी मगर
रात सपनों में तेरा आना अच्छा लगा !
ला इलाज ही सही मगर
प्रेम का ये रोग लगाना अच्छा लगा !
तनहा हूँ मगर मुझे
इस तरहां दिल को जलाना अच्छा लगा !!

                                       ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'


Monday 25 May 2015

मेरी नदी .........


हाँ ....मैं हूँ विशाल जल भण्डार
एक सागर
मगर मेरी प्यास ...
कभी ख़त्म नहीं होती
पी जाता हूँ मैं उस नदी को
जिसे मुझमें आ मिलने की
चाह है
हजारों मील चल कर
अनगिनित पत्थरों से
टक्कर लेती हुई
रास्ते में हर ज़हर को पीती हुई
मेरे पास आती है
और मैं भी ........
ये रस चख़ता थकता नहीं
क्यूँ कि वो मीठा पानी है !
और फ़िर मुझे नदी का ज़हर पी कर
ख़ुद को खारा बनाना अच्छा लगता है !!

                                      ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'


Monday 18 May 2015

तोल ना सका ......


तुझे छोड़ कर....
कभी किसी और का हो ना सका !
हर मोड़ पर....
चाहा बहुत मगर रो ना सका !
तेरी चाहत के....
तूफ़ानों का रुख मोड़ ना सका !
टूटे दिल को....
फिर कभी भी जोड़ ना सका !
तू धुआं थी....
सच था या झूठ कभी तोल ना सका !

                                       ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'

सुनो ........ख़ामोशी ........150518


Friday 15 May 2015

सुनो ........दुआ ........150515


मुझ को पड़ता है...... "अग़ज़ल"


ना किया करो बातें रुसवाई की तुम इतनी
बेसब्र आंसुओं को मनाना मुझको पड़ता है !

करती हो जब तुम जुल्म खुद पर इतना
ज़ख्म दर ज़ख्म उठाना मुझको पड़ता है !

दूरियाँ जब बढ़ाती हो तुम मुझसे इतनी
वक़्त की दूरिओं को सीना मुझको पड़ता है !

ना आया करो ख्वाबों में 'इंतज़ार' इतना
दरवाज़े तक उठ उठ के जाना मुझको पड़ता है !

                                            .............मोहन सेठी 'इंतज़ार' 

Thursday 14 May 2015

ऐ ख़ुदा ........अपेक्षा


ऐ ख़ुदा
तू क्या कर रहा है वहाँ सुनसान में
उस खुले और खाली आसमान में
जहाँ हवा तक नहीं
देख इस ज़मीं पर
हवा है मौसम है
फूल है पत्ती है
खुशबु है मुहब्बत है
पहाड़ है घाटी है
कितना ख़ुशगवार हर लम्हा है
आ तू भी आ ज़मीन पे
ऊपर तू बहुत अकेला हो जाता होगा
चल आज तुझे मैं
इस हसीन दुनियाँ की सैर करा लाता हूँ
तूने ये खिलोने बनाये हैं
तो कभी जमीं पे आ के खेला करो
खिलोनों को अच्छा लगता है
जब तेरी गोद में खेलें
अब तू हमारा है तो
तुझसे अपेक्षा भी है
कि कल का दिन भी कुछ ऐसा ही हसीं देना
और हो सके तो मेरे महबूब को मिला देना !!
                                          ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'




डरना क्या ........


ज़िंदगी है तो
जीने से डरना क्या !
ख़वाब रंगीन होते हैं
देखने से डरना क्या !
जाम जब होंठों को छू जाये
तो फिर पीने से डरना क्या !
प्यार हो जाये
तो इकरार से डरना क्या !
ज़िंदगी एक सफ़र ही तो है
फिर रास्तों से डरना क्या !
सफ़र में कई हमसफ़र होंगे
मिलना क्या बिछुड़ना क्या !
हर मंजिल एक पड़ाव ही तो है
पाना क्या और खोना क्या  !
जीवन सिर्फ़ एक आवागमन ही तो है
फिर आना क्या और जाना क्या !
ज़िंदगी है...... तो फिर डरना क्या .!!
                              ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'



Saturday 9 May 2015

अपेक्षाएँ ........


अपेक्षा थी मुझे इंसान से
कि इतनी प्रगति के बाद
हर एक को जीने का हक़ मिलेगा
मगर उल्टा हो रहा है
हर कोई दूसरे को लूट के
अपना घर भरे जा रहा है
दूसरे की रोटी छीन कर
जरूरत से जाएदा खाए जा रहा है
आदमी को देखो आज भी
औरत को नीचा दिखाये जा रहा है
बंदरों को केले खिलाये जा रहा है
और भगवान के बन्दों को
धूल चटाये जा रहा है
अपेक्षा किस से क्या करोगे
हर कोई तो यहाँ
उपेक्षा का राग गुनगुनाये जा रहा है !!
                                       .........मोहन सेठी 'इंतज़ार'


Wednesday 6 May 2015

जय विजय मई 2015 में "खिलौना" ....



मुझ से अच्छा तो वो खिलौना होगा
रुलाया जब भी किसी ने
गले तूने फिर उसे ही लगाया होगा !

मैं तेरा कुछ ना सही
बस वो खिलौना होता !
कभी गोद में सोया होता
कभी आग़ोश में खोया होता !
खेल के चाहे बेदर्दी से
तूने तोड़ दिया होता !
ऊब कर बेशक हमसे
रुख मोड़ लिया होता !
एक टूटा खिलौना ही सही.....
कुछ लम्हें जिन्दगी के
तेरे साथ तो जी लिया होता !!
                             ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'

सुनो ........सज़ा ........150506


Monday 4 May 2015

तड़प .....


सागर में मछली
स्वछंद घूमती है
हाँ बड़ी छोटी को खाती है 
मगर इंसान
पहले धोखे से मुहँ में कांटा फ़साता है
फिर खींच झटके से और अड़ाता है
पानी से निकाल
ना खाता है
ना डुबाता है
बस तड़पने को डब्बे में छोड़ जाता है
कुछ पल देखती रही ईस अजूबे को
ऐसे ज़ालिम समंदर में तो ना थे
क्या था पता उसे
समंदर के बाहर की दुनिया का
ये इंसान हैं  .....
बस तड़पते हैं और तड़पाते हैं !!
                                    ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'






सुनो ........दवा ........150504



Friday 1 May 2015

अभिमन्यु........


चौराहे पे दोड़ रहा हूँ
मगर ये चोराहा अजीब है
कोई सड़क नहीं निकलती यहाँ से
सिर्फ़ गोलचक्कर के चारों तरफ
दोड़ सकता हूँ
मगर कब तक ...
क्या माईने हैं इसके
मंजिल पे जाना है
तो रास्ते कहाँ हैं
अगर रास्ते ही नहीं तो
मंजिल कैसी
जब दोनों ही नहीं तो
तो गोल गोल दोड़ का क्या
क्या जीवन चक्रव्यहू है ?
या मैं अभिमन्यु बन गया हूँ  .......
                    ............मोहन सेठी 'इंतज़ार'