तेरे जूड़े में मोतिये की वेणी सजा के
मौसम-ए-इश्क खुशनुमा बना दूँ तो ...?
क्यों बहकते हो इस तरहें मय के प्यालों से
अपने हुस्न का जादू तुझ पे चला दूँ तो...?
दुनियाँ में मुझ सा तेरा दीवाना ना होगा और
मैं अपने दिल को चीर के तुझे दिखा दूँ तो...?
तेरे दिल में सोये एहसास धधक उठेंगे
दो अल्फाज़ मुहब्बत के कानों में सुना दूँ तो...?
तेरी ख़ामोशी में शिकायत तो थी 'इंतज़ार'
तुझे आगोश में ले तेरे गम मैं चुरा लूँ तो...?
अबीर गुलाल तो होली में सब लगाते हैं
मैं रंग मुहब्बत का, थोड़ा सा लगा दूँ तो ...?
........Mohan Sethi 'इंतज़ार'
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