Thursday 30 April 2015

नया तूफ़ान ........


जिंदगी में कोई
क्यूँ नहीं मिलता
एक नया तूफ़ान
क्यूँ नहीं खिलता
मैं भी देख लूँ जी के
ऊँचे टीलों पे
क्या होते हैं एहसास
इन कबीलों के !
मैं भी उड़ लूँ
तूफ़ानी फिज़ाओं में
जानता हूँ एक दिन
तूफ़ान थम जायेंगे
फिर खुशिओं के
उत्सव ढल जायेंगे
और बेवफाईओं के
ख़ामोश पल आयेंगे !
मौत आ जाये बेधड़क
तूफ़ान के बवंडर में
न होने से तो
कुछ होना अच्छा होगा
प्यार ना मिलने से तो
मिलकर खोना अच्छा होगा
धोखा भी हुआ तो
क्या फ़र्क होगा
यादों की धरोहर तो मेरा हिस्सा होगा .......
                                    ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'

Tuesday 28 April 2015

सुनो ........तिनके ........150428


बागबान ........


मैं तेरे दिल का तड़ित चालक हूँ
सीने से मुझे लगाये रखना
जानता हूँ जब तेरे दिल में
दुखों का अम्बार लगा होगा
काले बादलों का घिराव होगा
न जाने कब कड़क कर
ये बेदर्द बादल
तेरे कमजोर वक़्त में बिजली गिरायें
तो मैं इन बिजलियों को पी जाऊँगा
तुझे विद्युत प्रवाह से बचाऊंगा
ये जालिम अक्सर फूंक कर
हरी भरी दिल की बगिया को
ख़ाक कर जाते हैं
मैं तेरा बागबान बन जाऊंगा !!
                                    ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'
         

Monday 27 April 2015

लुटेरे ........


लुटेरों से तो कातिल अच्छे
जान तो ले जाते हैं
लुटेरों की गुस्ताखी देखो
लूट के चले जाते हैं
और उम्र भर के लिये
दिल तड़पता छोड़ जाते हैं !

कोई कानून तो हो
कोई रिवायत तो हो
ख़ूनी को मौत की सजा होती है
ये लुटेरे उल्टा हमीं को
उम्र भर की सज़ा दे जाते हैं !

दुनियाँ सूली पे चढ़ा रखी है
पूरी कायनात पीछे लगा रखी है
लुटेरे बन दिल की ख़लिश ना बनो
कातिल ही बनो ....
हमने तो जान तेरे नाम ही लिखा रखी है !!

                                             ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'





Sunday 26 April 2015

सुनो ........शीशा ........150426


God please help to endure ........


its a moment for a pause
we know time won’t stop
our lives will be
compelled to endure  
but for the sake of
those departed souls
in the tremor of big holes
and those who are injured
and are looking up
to the humanity
to give another opportunity
to live as normal as possible
please rise above your gaze
contribute in any form or shape
money time prayer or a word of hope
to let them know
that they are not alone
in this hour of drop
                         ........Mohan Sethi 'इंतज़ार'



Saturday 25 April 2015

समीक्षा: 'अहसास एक पल' : Lekhika 'Pari M Shlok'




Lekhika 'Pari M Shlok' जी नयी पीढ़ी की उभरती प्रतिभाशाली कवयित्री हैं उनकी रचनाओं में परिपक्तवा देखते ही बनती है ! युवा हैं लेकिन रचनाएँ ऐसे जैसे सालों का अनुभव झोली में समेटे हों ! उनकी रचनाओं में दिल को छु जाने का अंदाज़ बहुत खूब है ! शब्दों को भावनाओं में पिरोना कोई इनसे सीखे ! ऐसा लगता है जैसे घटना पाठक की आँखों के सामने घट रही हो ! और शब्दों की सरलता और सहजता से कठिन भाव भी बखूबी अभिव्यक्त कर जाती हैं ! दिल में एक समन्दर है एहसासों का जहाँ लहरें उठती हैं तो कई गहरे भाव ले कर उठती हैं चाहे वो आरज़ू हो मुफलिसी हो प्रेम हो या आग हो ! अनेक रचनायें विभिन पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं मगर प्रिंट मीडिया में पहली पुस्तक एक साँझा कविता संग्रह 'अहसास एक पल' के रूप में प्रकाशित हुई है ! इस में उनकी ग्यारह रचनायें सम्मलित की गई हैं कुछ सुंदर पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :-

आरज़ू ............
रात बटोरती रही
बिखरे हसरतों के सूखे तिनके
चाहतों की मशाल से
घूरते अंधेरों को फूंकती रही
जुगनुओं की तरह चलता रहा तसव्वुर
हवाओं के जिस्म पर

मुफलिसी ..............
दर्द जहाँ गुल्ली डंडा खेलती हैं
सिसकियाँ महफ़िल जमायें
ज़ोर-ज़ोर तालियां बजाती हैं
आह ! हर लब का गीत है
कोने-कोने में महक है मुफलिसी की

पहले की कुछ रचनायें जो उनके ब्लॉग एहसास की लहरों पर  और facebook पर पढ़ी जा सकती हैं ......

जला कर प्यार की माचिस
झोंक देते हैं
अहम का तिनका-तिनका इसकी लौ में
सर्द मौसम में अलाव जला लेते हैं
चलो रिश्ते की ठण्ड मिटा देते हैं

रूक जाओ .........
ये जो नन्हे नन्हे फूल
ज़ज़्बातो कि
वादियों में खिल उठें है
मैं जो भीग रही हूँ
अहसासों के झरने में हर शब
ये साँसे जो तुमने भर दी हैं मेरी साँसों में
और जीने कि तलब बढ़ा दी है
ये जो तमाम ख्वाब
पलकों को दे दियें हैं तुमने
इन सबका वास्ता है तुम्हे….. मत जाओ

और ख़्वाब झुलस जाते है .....
हम उस किनारे से मिलने की आरज़ू में
उम्र की धार में ख़ामोशी से बहे जाते हैं
कभी धुंधला सा अक्स पकड़ते हैं
कभी खुद से ही छूट जाते हैं
कोई पर्वत कभी बनते हैं तो..
कभी रेत सा बिखर जाते हैं

आज मेरा दिल टूटा है .......
आज जाने क्यों इतना सन्नाटा है
मानिंद मातम मना रहा है कोई
खिलौना ज़ज़्बात का यहाँ-वहाँ बिखरा है
कोई जिद्दी बच्चा बे-सबब रूठा है
कि शायद आज मेरा दिल टूटा है !!

परी जी को ढेरों बधाईओं और शुभकामनाओं के साथ आप सब से अनुरोध है कि इस पुस्तक को आप सब भी पढें और लुत्फ़ उठायें !

........मोहन सेठी 'इंतज़ार'


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Thursday 23 April 2015

ऑडियो ........बनना होगा

कह नहीं पाया ........

इज़हारे मुहब्बत तो
करनी बहुत चाही
कभी तूने सुनना नहीं चाहा
और कभी मैं कह नहीं पाया !!

मैं दिल लुटाने
आया तो था
कभी तू लूट नहीं पाई
और कभी मैं लुट नहीं पाया !!

कितने अश्यार लिखने चाहे
मैंने मेरे लिये
कभी तू पढ़ नहीं पाई
और कभी मैं लिख नहीं पाया !!

बाँहों में भर कर तुझे
बात जब बोसों की आयी
तो कभी तूने रोकना नहीं चाहा
और कभी मैं रुक नहीं पाया !!

                                      ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'







Wednesday 22 April 2015

बनवास ........

खुशनुमा बगिया से मुझको
आज मिला बनवास है
क्या ख़बर अब मुझको यारो
किस को किस की प्यास है
जिंदगी में ढूंडता हर कोई
ख़वाब की सौगात है
उसको जो भी अब मिले
मुझको तो काटना बनवास है
इश्क़ में होता यही है
हर कोई यहाँ उदास है
जो नहीं मिलता जहाँ में
क्यों उसी के लिये दिल उदास है !!
                                      ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'





सुनो ........ज़ख्म ........150422


Tuesday 21 April 2015

बनना होगा ........



तुम दीया हो तो बाती मुझे बनना होगा
साथ पाने को तेरा चाहे मुझे जलना होगा !

तुम अगर रात हो तो अँधेरा मुझे बनना होगा
तुझे मिलने को सवेरों से मुझे लड़ना होगा !

तुम हो दरिया तो समन्दर मुझे बनना होगा
मुझ में फिर तुमको मुहब्बत में मिलना होगा !

तुम अगर हवा हो तो धूल मुझे बनना होगा
आगोश में ले मुझे आँधियों सा तुम्हें उड़ना होगा !

तुम अगर चाँद हो तो चकोरी मुझे बनना होगा
हर रात मिलन का गीत तुम्हें मेरा सुनना होगा !

फूल ग़र तुम हो तो भंवरा मुझे बनना होगा
बोसों के लिये 'इंतज़ार' तुझे फिर ना डरना होगा !

                                                ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'


सुनो ........ज़िन्दगी ........150421


Monday 20 April 2015

मेरा घर ........


शहद का घर था मेरा
मांग के फूलों से लाया था !
हर रोज़ इबादत की थी उनकी
कभी फूलों की मर्ज़ी में
कभी चूमा था ख़ुदगरजी में !
ये रस तमाम गुलशन से मैंने
प्यार का इनाम पाया था !
एक इंसान ने मुझे आज लूटा है !
ले गया है सब शहद घर से मेरे !
धुएँ से अँधा बनाया मुझको
न पूछा न बताया मुझको
घर से बेघर बनाया मुझको
इंसानियत इतनी गिर चुकी है
क्यों भगवान ने बनाया इसको ?
                                   ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'


सुनो ........ख़ुदकुशी ........150420


Friday 17 April 2015

महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना...OBO



मेरी रचना Open Books Online(OBO) पर BEST CREATION OF THE MONTH
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महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना
(BEST CREATION OF THE MONTH)
वर्तमान स्थान :- सिडनी (ऑस्ट्रेलिया)



Wednesday 15 April 2015

जाऊँ कैसे ........


रात जब हम मिल बैठे थे
तमन्नाओं के साये में !
तेरे उलझे हुए गेसुओं को
सुलझाया था मैंने !
एक दिया प्यार का
जलाया था तुमने ऐसे !
आग फिर रूह को लग गयी कैसे !
जल गया सब कुछ
मिट गया वजूद जो कल तक था मेरा !
धुआं उस आग का
जम गया है मेरी सांसो में !
आग इतनी कि दिल बुझाता कैसे ?
क्या ख़बर थी कि झुलस जाऊंगा
वरना तेरे घर क्या आता ऐसे !
मैं होश में आऊँ तो आऊँ कैसे !
अब बता मैं वापस जाऊँ तो जाऊँ कैसे !!

                                      ......मोहन सेठी 'इंतज़ार'


सुनो ........ईमान ........150415


Friday 10 April 2015

सुनो ........तलब ........150410


तेरे बिन .......


हवा क्यूँ है ?
ये सूरज क्यूँ है ?
क्या करूँ मैं किरणों का
ये सूरज निकलता क्यूँ है ?
ना जमीं मेरी है
ना आसमां मेरा
बस इन अंधेरों का अँधेरा मेरा !
ये चमन क्यूँ है
ये फूल मुरझाये क्यूँ नहीं अब तक
ये तितलियाँ... ये भंवरे
घर गये क्यूँ नहीं अब तक
पेड़ों ने पत्तियाँ गिराई नहीं ?
हर चीज़ क्यूँ मुरझाई नहीं अब तक
धड़कनें क्यूँ चल रही हैं धक धक
जब तू ही नहीं
तो क्यूँ है ये दुनियाँ अब तक !!
                             
                                          ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'


Wednesday 8 April 2015

भँवरा........



भँवरा हूँ ......
फूल दर फूल घूमना आदत मेरी
हर फूल को चूमना चाहत मेरी
फूल कहाँ पहचानते हैं मुझे
मेरे जैसे कई आते हैं हर रोज़
बिन बुलाये यहाँ !
मेरी तो फ़ितरत है
नये मन्ज़र ढूँढ़ना
रुक तो तभी पायूँगा
जब किसी फूल के
ख़ूनी पंजों में जकड़ जाऊंगा
वर्ना उड़ता उड़ता
बहुत दूर निकल जाऊंगा
                       ......मोहन सेठी 'इंतज़ार'





वक़्त ........

मेरे एक पेड़ पर जब बिजली गिरी तो बेचारा चीर दिया गया और सौ सालों से सब झेलता हुआ एक पल में मारा गया ......


ना पत्ता था
ना फूल था
ना ही मैं कोई शूल था
पेड़ था तना हुआ
तूफानों का मकबूल था
हौंसलों पे खड़ा हुआ
ज़मीं में दृढ़ गड़ा हुआ
पर वक़्त से कुछ डरा हुआ
और आज हूँ ...... मृत पड़ा हुआ

                             ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'





Sunday 5 April 2015

आँख का नूर........


शाख़ से जो टूटा था फूल
वो मैं ही तो था !
नफ़रत की निगाह से
जिसे देखा था तूने
वो मैं ही तो था !
जो चुभा था तुझको
वो शूल मैं ही तो था !
तेरे दिल का रिसता नासूर
शायद वो भी मैं ही था !
वक़्त वक़्त की बात है 'इंतज़ार'
वर्ना तेरी आँख का नूर
मैं ही तो था !!
                  ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'

Friday 3 April 2015

खिलौना ........



मुझ से अच्छा तो वो खिलौना होगा
रुलाया जब भी किसी ने
गले तूने फिर उसे ही लगाया होगा !

मैं तेरा कुछ ना सही
बस वोह खिलौना होता !
कभी गोद में सोया होता
कभी आग़ोश में खोया होता !
खेल के चाहे बेदर्दी से
तूने तोड़ दिया होता !
ऊब कर बेशक हमसे
रुख मोड़ लिया होता !
एक टूटा खिलौना ही सही.....
कुछ लम्हें जिन्दगी के
तेरे साथ तो जी लिया होता !!
                             ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'



Thursday 2 April 2015

तेरे एहसास ...जय विजय अप्रैल 2015 में प्रकाशित




दिल से उठते हैं ये बुलबुले
एहसासों का सैलाब लिये
उड़ना चाहते हैं ये
खुले आसमान पर
मगर दिल के बंद दरवाज़ों से टकरा
चटक जाते हैं
और हम लग जाते हैं
उन्हें समेटने
कहीं मैले न हो जायें
या कोई झांक न ले इनमें
जानते हो ना
दीवारों के भी कान होते हैं
मगर कुछ बच पाते हैं
और कुछ बिख़र जाते हैं
और हम खो जाते हैं
झोली में बचे एहसासों में
और बह जाते हैं
भावनाओं के दरिया में
दो किनारों की धारा जैसे
एक किनारा कुछ मिठास लिये
दूसरा दर्द का एहसास लिये
अनजाने लग जाते हैं किसी एक किनारे
फिर शुरू होता है....
एक बवंडर तेज गर्म हवाओं का
या पुरवाई सी ठंडी घटायों का
और हम जी लेते हैं वोह लम्हा
क्यों कि जी चुके हैं हम हरदिन
ये अनगिनित बार
तेरे एहसास.........
                                    ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'