Monday 2 February 2015

मेरी दोस्त ........


एक पेड़ हूँ
हराभरा लह्लहाता हूँ
तुमने तो मुझे देखा है
झूमते हुए इन मस्त हवाओं में
और तूफानों के बाद भी
देखते हो शांत खड़ा रहता हूँ
तुम नहीं जानते कितनी पीड़ा से
निकल के आता हूँ
कमर ही मोड़ देते हैं ये तूफान
मगर फिर सीधा खड़ा हो जाता हूँ
अब सीख गया हूँ छिपाना
अपने दुःख हरी पत्तिओं के पीछे

चिडियाँ मुझ पर
घोसला बना कर रहती हैं
चींटीयाँ तो मेरी जड़ में ही
सो जाती हैं
न जाने कितने जीव जंतु
मुझे मिलने आते हैं
और एक दूसरे का
पेट भर जाते हैं
मैं देखता हूँ वो युद्ध
अपने प्राणों की रक्षा में
असमर्थता को हारते हुए

और इन्सान तो
मेरी छाया में
हर दम सुस्ताते हैं
फिर भी मुझे
काट काट सताते हैं
भगवान भी निर्दयी देखो
मौसम के बहाने
मेरी पत्तीयाँ लुटा देता है
ये तो वक़्त है जो बदलता है
और नयी पत्तियाँ दे जाता है
एक बार फिर जी लेता हूँ
अपना बीता योवन ....
बस ये जीवन की पीड़ाएँ
और कुछ मीठे पल
वक़्त की रफ़्तार
में ना जाने कब गुजर जाते हैं

मैं हमेशा स्वाभिमान से
तना रहता हूँ
जानते हो क्यों ?
धरती मेरी दोस्त
हर दम मेरा पोषण कर
मुझ पर है उपकार करती
जड़ें पकड़ कर
रोक रखती है तूफानों में
ये न हो तो बता क्या होता
मेरा इस वीराने में
सिर्फ़ एक... बस एक
सच्चा दोस्त ही
तो चाहिए जीवन निभाने में
                                ........इंतज़ार



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