फिर मिली
मुझे उपवन में
सवेरे के नये सूरज की
खिलती किरणों की धूप सी !
दिल में एक पुरवाई चली !
भोर का उन्माद लिये
दिल के मोर ने
पंख फैला दिये !
नाच नाच
रंग दिखलाने को !
झुकी पलकों में
तिरछी आँखों से
जो नज़र मिली !
एक मुस्कान में
दबी हाँ छुपी मिली !
मोरनी दिल के
मोर के साथ आ मिली !!
........मोहन सेठी 'इंतज़ार'
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