Wednesday, 4 February 2015

नज़र्बट्टू........


क्या वो तुम थीं
एक अप्सरा
जो सज संवर
गुलिस्तां से जा रही थी
कुछ दिन पहले ?
या वजह है मेरी गफ़लत !
तेरा हुस्न देख कर
फूल भी शर्मा गए
तेरी शान में
डालियाँ झुक झुक
आदाब करने लगीं
न निकला करो शहर में
सज धज के इस तरहां
मेरी सलाह मानो तो
लगा लिया करो
काले टीके का नज़र्बट्टू
कमबख्त चाँद की
नज़र आ पड़ी
तो बेचारा जल जायेगा !
और कहीं मेरी ही नज़र लग गई
तो मुझे फ़िक्र है
कि तुम्हारी तबीयत नासाज़ होगी
और शहर का मिजाज़ बिगड़ जायेगा !

                                    ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'







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