Friday 20 February 2015

उड़ अकेला ........



अब उड़ अकेला..... जा उड़ अकेला
न शब्द होंगे
न भाव होंगे
ना कविता का ठाँव
उजड़ा सा शहर होगा जैसे सूना गाँव !

रूखे से गीत होंगे
रूठे वो मीत होंगे
पेड़ सब ठूंठ होंगे
कहाँ से पायेगा अब छाओं  !

बिखरे से मोती होंगे
धागे दिल के टूटे होंगे
वो भी हम से रूठे होंगे
कोन बताए कहाँ सर कहाँ पाँव !

टूटे से ख़वाब होंगे
खामोशियों के राज होंगे
बहुत हम उदास होंगे
क्यूँ गाये कागा अब काओं काओं !

                                             ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'


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