Wednesday 29 October 2014

प्रदूषण .....



ऐ इन्सान एक तू है
जो हर झरने को
हर नदी को
यहाँ तक की
हर समुद्र को
दूषित बनाता है
गंगा की पूजा करता है
और उसी को
मैला कर रुलाता है

दुनिया का प्रदूषण
तेरी देन
फेक्ट्रियों की चिमनी 
उगलती जहर हर पहर
हर गतिविधि तुम्हारी
वातावरण में फैलाती लाचारी
ये धुऐं और रासैनिक प्रदूषण
बने बीमारी के आभूषण
दम घोट रहे जीव जन्तु
और फसलों का
सोच क्या होगा तेरी
आने वाली नसलों का

हर विकार की जड़ तू है
पापों का गढ़ तू है
रुक जा संभल जा
अपने तरीकों से
वर्ना अपने
पापों में खुद
डूब जायेगा
फिर कुछ भी
तुझे नहीं बचाएगा
सारी धरती पे
प्रलय हो जाएगी
अफ़सोस तुझे समझ
बहुत देर में आयेगी
                        ............इंतज़ार

(...क्षमा चाहता हूँ
कौन सुनता है "इंतज़ार" तेरी दुहाई को
मैं दबा हूँ जीवन के पहाड़ के नीचे
तू भैंस के आगे बीन ना बजा
मुझे जीवन चलाना ना सिखा...)

Monday 27 October 2014

दो पहिये....


जीवन चलाता तो भगवान है 
क्या साईकिल सा है जीवन 
साईकिल के दो पहिये   
हैं दोनों बराबर  
लेकिन महत्व बराबर है कहाँ  
अगला पहिया आदमी 
पिछला पहिया औरत
जंजीरों में औरत बंधी  
दिशा बदले आदमी  
जानो कौन मजबूर है 

 जीवन बैलगाड़ी सा क्यों नहीं 
दोनों पहिये बराबर 
महत्व बराबर 
संतुलन निश्चित   
चलाता तो फिर भी भगवान है 
मगर औरत और आदमी 
एक से इन्सान हैं 

बच्चे बुढ़े घर बार 
सुख दुःख का संसार 
सब इसी गाड़ी पर सवार 
दोनों पहिओं पर बराबर भार
तभी तो चले 
अच्छे से संसार 
                                    ........इंतज़ार 



तेरी आस ......


तेरे बिन पेड़ो ने
पतझड सी लगाई हुई है
फूलों ने भी न खिलने की
कसम खाई हुई है
भवरों ने तो गली में
आना ही छोड़ दिया है
यहाँ तक कि सूरज भी 
निकलता नहीं आज कल
क्यों की बादलों ने
गम की झड़ी लगाई हुई है

मैं तो रोती रहती हूँ
घुटनों पर सर रख कर
न जाने क्यों
सारी कायनात ने
तेरे आने की आस लगाई हुई है

....इंतज़ार