Friday, 1 May 2015

अभिमन्यु........


चौराहे पे दोड़ रहा हूँ
मगर ये चोराहा अजीब है
कोई सड़क नहीं निकलती यहाँ से
सिर्फ़ गोलचक्कर के चारों तरफ
दोड़ सकता हूँ
मगर कब तक ...
क्या माईने हैं इसके
मंजिल पे जाना है
तो रास्ते कहाँ हैं
अगर रास्ते ही नहीं तो
मंजिल कैसी
जब दोनों ही नहीं तो
तो गोल गोल दोड़ का क्या
क्या जीवन चक्रव्यहू है ?
या मैं अभिमन्यु बन गया हूँ  .......
                    ............मोहन सेठी 'इंतज़ार'

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