ऐ ख़ुदा
तू क्या कर रहा है वहाँ सुनसान में
उस खुले और खाली आसमान में
जहाँ हवा तक नहीं
देख इस ज़मीं पर
हवा है मौसम है
फूल है पत्ती है
खुशबु है मुहब्बत है
पहाड़ है घाटी है
कितना ख़ुशगवार हर लम्हा है
आ तू भी आ ज़मीन पे
ऊपर तू बहुत अकेला हो जाता होगा
चल आज तुझे मैं
इस हसीन दुनियाँ की सैर करा लाता हूँ
तूने ये खिलोने बनाये हैं
तो कभी जमीं पे आ के खेला करो
खिलोनों को अच्छा लगता है
जब तेरी गोद में खेलें
अब तू हमारा है तो
तुझसे अपेक्षा भी है
कि कल का दिन भी कुछ ऐसा ही हसीं देना
और हो सके तो मेरे महबूब को मिला देना !!
........मोहन सेठी 'इंतज़ार'
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