Monday, 25 May 2015

मेरी नदी .........


हाँ ....मैं हूँ विशाल जल भण्डार
एक सागर
मगर मेरी प्यास ...
कभी ख़त्म नहीं होती
पी जाता हूँ मैं उस नदी को
जिसे मुझमें आ मिलने की
चाह है
हजारों मील चल कर
अनगिनित पत्थरों से
टक्कर लेती हुई
रास्ते में हर ज़हर को पीती हुई
मेरे पास आती है
और मैं भी ........
ये रस चख़ता थकता नहीं
क्यूँ कि वो मीठा पानी है !
और फ़िर मुझे नदी का ज़हर पी कर
ख़ुद को खारा बनाना अच्छा लगता है !!

                                      ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'


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