ज़िंदगी है तो
जीने से डरना क्या !
ख़वाब रंगीन होते हैं
देखने से डरना क्या !
जाम जब होंठों को छू जाये
तो फिर पीने से डरना क्या !
प्यार हो जाये
तो इकरार से डरना क्या !
ज़िंदगी एक सफ़र ही तो है
फिर रास्तों से डरना क्या !
सफ़र में कई हमसफ़र होंगे
मिलना क्या बिछुड़ना क्या !
हर मंजिल एक पड़ाव ही तो है
पाना क्या और खोना क्या !
जीवन सिर्फ़ एक आवागमन ही तो है
फिर आना क्या और जाना क्या !
ज़िंदगी है...... तो फिर डरना क्या .!!
........मोहन सेठी 'इंतज़ार'
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