ना किया करो बातें रुसवाई की तुम इतनी
बेसब्र आंसुओं को मनाना मुझको पड़ता है !
करती हो जब तुम जुल्म खुद पर इतना
ज़ख्म दर ज़ख्म उठाना मुझको पड़ता है !
दूरियाँ जब बढ़ाती हो तुम मुझसे इतनी
वक़्त की दूरिओं को सीना मुझको पड़ता है !
ना आया करो ख्वाबों में 'इंतज़ार' इतना
दरवाज़े तक उठ उठ के जाना मुझको पड़ता है !
.............मोहन सेठी 'इंतज़ार'
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