Lekhika 'Pari M Shlok' जी नयी पीढ़ी की उभरती प्रतिभाशाली कवयित्री हैं उनकी रचनाओं में परिपक्तवा देखते ही बनती है ! युवा हैं लेकिन रचनाएँ ऐसे जैसे सालों का अनुभव झोली में समेटे हों ! उनकी रचनाओं में दिल को छु जाने का अंदाज़ बहुत खूब है ! शब्दों को भावनाओं में पिरोना कोई इनसे सीखे ! ऐसा लगता है जैसे घटना पाठक की आँखों के सामने घट रही हो ! और शब्दों की सरलता और सहजता से कठिन भाव भी बखूबी अभिव्यक्त कर जाती हैं ! दिल में एक समन्दर है एहसासों का जहाँ लहरें उठती हैं तो कई गहरे भाव ले कर उठती हैं चाहे वो आरज़ू हो मुफलिसी हो प्रेम हो या आग हो ! अनेक रचनायें विभिन पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं मगर प्रिंट मीडिया में पहली पुस्तक एक साँझा कविता संग्रह 'अहसास एक पल' के रूप में प्रकाशित हुई है ! इस में उनकी ग्यारह रचनायें सम्मलित की गई हैं कुछ सुंदर पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :-
आरज़ू ............
रात बटोरती रही
बिखरे हसरतों के सूखे तिनके
चाहतों की मशाल से
घूरते अंधेरों को फूंकती रही
जुगनुओं की तरह चलता रहा तसव्वुर
हवाओं के जिस्म पर
मुफलिसी ..............
दर्द जहाँ गुल्ली डंडा खेलती हैं
सिसकियाँ महफ़िल जमायें
ज़ोर-ज़ोर तालियां बजाती हैं
आह ! हर लब का गीत है
कोने-कोने में महक है मुफलिसी की
पहले की कुछ रचनायें जो उनके ब्लॉग एहसास की लहरों पर और facebook पर पढ़ी जा सकती हैं ......
जला कर प्यार की माचिस
झोंक देते हैं
अहम का तिनका-तिनका इसकी लौ में
सर्द मौसम में अलाव जला लेते हैं
चलो रिश्ते की ठण्ड मिटा देते हैं
रूक जाओ .........
ये जो नन्हे नन्हे फूल
ज़ज़्बातो कि
वादियों में खिल उठें है
मैं जो भीग रही हूँ
अहसासों के झरने में हर शब
ये साँसे जो तुमने भर दी हैं मेरी साँसों में
और जीने कि तलब बढ़ा दी है
ये जो तमाम ख्वाब
पलकों को दे दियें हैं तुमने
इन सबका वास्ता है तुम्हे….. मत जाओ
और ख़्वाब झुलस जाते है .....
हम उस किनारे से मिलने की आरज़ू में
उम्र की धार में ख़ामोशी से बहे जाते हैं
कभी धुंधला सा अक्स पकड़ते हैं
कभी खुद से ही छूट जाते हैं
कोई पर्वत कभी बनते हैं तो..
कभी रेत सा बिखर जाते हैं
आज मेरा दिल टूटा है .......
आज जाने क्यों इतना सन्नाटा है
मानिंद मातम मना रहा है कोई
खिलौना ज़ज़्बात का यहाँ-वहाँ बिखरा है
कोई जिद्दी बच्चा बे-सबब रूठा है
कि शायद आज मेरा दिल टूटा है !!
परी जी को ढेरों बधाईओं और शुभकामनाओं के साथ आप सब से अनुरोध है कि इस पुस्तक को आप सब भी पढें और लुत्फ़ उठायें !
........मोहन सेठी 'इंतज़ार'
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