इज़हारे मुहब्बत तो
करनी बहुत चाही
कभी तूने सुनना नहीं चाहा
और कभी मैं कह नहीं पाया !!
मैं दिल लुटाने
आया तो था
कभी तू लूट नहीं पाई
और कभी मैं लुट नहीं पाया !!
कितने अश्यार लिखने चाहे
मैंने मेरे लिये
कभी तू पढ़ नहीं पाई
और कभी मैं लिख नहीं पाया !!
बाँहों में भर कर तुझे
बात जब बोसों की आयी
तो कभी तूने रोकना नहीं चाहा
और कभी मैं रुक नहीं पाया !!
........मोहन सेठी 'इंतज़ार'
करनी बहुत चाही
कभी तूने सुनना नहीं चाहा
और कभी मैं कह नहीं पाया !!
मैं दिल लुटाने
आया तो था
कभी तू लूट नहीं पाई
और कभी मैं लुट नहीं पाया !!
कितने अश्यार लिखने चाहे
मैंने मेरे लिये
कभी तू पढ़ नहीं पाई
और कभी मैं लिख नहीं पाया !!
बाँहों में भर कर तुझे
बात जब बोसों की आयी
तो कभी तूने रोकना नहीं चाहा
और कभी मैं रुक नहीं पाया !!
........मोहन सेठी 'इंतज़ार'
No comments:
Post a Comment