शहद का घर था मेरा
मांग के फूलों से लाया था !
हर रोज़ इबादत की थी उनकी
कभी फूलों की मर्ज़ी में
कभी चूमा था ख़ुदगरजी में !
ये रस तमाम गुलशन से मैंने
प्यार का इनाम पाया था !
एक इंसान ने मुझे आज लूटा है !
ले गया है सब शहद घर से मेरे !
धुएँ से अँधा बनाया मुझको
न पूछा न बताया मुझको
घर से बेघर बनाया मुझको
इंसानियत इतनी गिर चुकी है
क्यों भगवान ने बनाया इसको ?
........मोहन सेठी 'इंतज़ार'
No comments:
Post a Comment