मेरे एक पेड़ पर जब बिजली गिरी तो बेचारा चीर दिया गया और सौ सालों से सब झेलता हुआ एक पल में मारा गया ......
ना पत्ता था
ना फूल था
ना ही मैं कोई शूल था
पेड़ था तना हुआ
तूफानों का मकबूल था
हौंसलों पे खड़ा हुआ
ज़मीं में दृढ़ गड़ा हुआ
पर वक़्त से कुछ डरा हुआ
और आज हूँ ...... मृत पड़ा हुआ
........मोहन सेठी 'इंतज़ार'
ना पत्ता था
ना फूल था
ना ही मैं कोई शूल था
पेड़ था तना हुआ
तूफानों का मकबूल था
हौंसलों पे खड़ा हुआ
ज़मीं में दृढ़ गड़ा हुआ
पर वक़्त से कुछ डरा हुआ
और आज हूँ ...... मृत पड़ा हुआ
........मोहन सेठी 'इंतज़ार'
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