हम गरीब लोग हैं
हमारी तिजोरी में सिर्फ़
चार शब्दों का बस खजाना था
अनाड़ी थे इसलिये
कुछ पहली रचनाओं में ही
सब खर्च कर दिया
और कुछ उधार ले खा गए
अब हालत ये है कि
कंगाली के दिल हैं आ गए
और उधार मिलता नहीं
दिल में कुछ उबरता नहीं
चोरी की तो
पकड़े जाने का डर है सताता
जेल जाने को भी
अभी दिल में अरमान नहीं जागा
रिश्वत भी लें तो किससे मांगें
जानने वाले अब
पहचानने से भी इंकार करते हैं
फिर भी हम कविता से प्यार करते हैं
भूख तो भूख है
रोकने से रूकती नहीं
अपनी नहीं तो न सही
अब उनकी परोसी जो भी है
उसी से गुजर बसर करते हैं
........इंतज़ार
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