Friday 31 July 2015

गुज़रा ज़माना ........


कभी ऐसे भी दिन थे
होती है सोच हैरानी
बचपन हरा कर
जब जीती थी मासूम जवानी !
याद है जब मैंने
चूमी थी तेरी पेशानी
आज भी भुला नहीं पाता
है मुझ को हैरानी !

वो आंखें मिलाना
तेरा हाथ छूने के
नादान बहाने जुटाना
तेरी नज़र बचा कर
तुझे तकते जाना !
हवा के झोंके से
जब तेरा पल्लू मुझे छू जाना
उफ़ ...तुझ पे इसकदर मर जाना
क्यूँ होता है
दिल ऐसा दीवाना
हैरां हूँ वो भी क्या था ज़माना !

ये बात है इतनी पुरानी
आज भी याद है मुझे
वो भोली भाली
मासूम जवानी
फिर जुदा कर दिया हमें
ये थी वक़्त की नादानी
बड़ी गति से फिर
भागी ये जिंदगानी !

न पौधा रहा
न गेहूँ का दाना
वक़्त की चक्की ने
बना दिया आटा पुराना
हाय.... मगर कैसे भुला दूँ
मैं वो गुज़रा ज़माना.......

                         ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'



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