रूठना मनाना
है अपनापन जताना !
अपनों से ही होता है
मुमकिन यूँ रूठ जाना !
तुम रूठी हो तो लो
मैं मनाने लगा हूँ !
मगर जल्दी से इतनी
ना तुम मान जाना !
दिल में मुस्कुराना
मगर चेहेरे पे अपने
नाराज़गी दिखाना !
कुछ तोहमत लगाना
कुछ शर्तें मनवाना
कुछ नखरे दिखाना !
ये ज़ुल्फ़ें लहराना
मुझे पागल बनाना !
कुछ देर मेरी बेबसी का
लुत्फ़ उठाना !
मगर सुनो ऐ सांवली लड़की ....
फिर मान जाना !
........मोहन सेठी 'इंतज़ार'
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