Saturday, 7 March 2015

मेंढक........


मैं तो मेंढक था
जिसको वक़्त ने श्राप दे
कुवें में धकेल दिया था
एक दिन एक राजकुमारी आयी
और मुझ से बहुत बातें की
ना जाने उसको क्या हुआ
कि उसने इश्क़ का इज़हार किया
और मैं बन गया राजकुमार फिर से
और उड़न छू हुआ वक़्त का श्राप !
मगर मेरी कहानी कुछ फ़र्क रही
एक दिन राजकुमारी ने क्रोध में
अपने प्यार का वादा वापस माँगा
और मैं उसे मना ना कर सका
फिर वक़्त के श्राप में घिर बैठा
बन गया फिर से एक मेंढक
और उसने मुझे
उसी कुवें में धकेल दिया
और निकल पड़ी
एक और कुवें की ख़ोज में !

बड़ी चीज़ है इश्क  'इंतज़ार' !
जब होता है...
तो जादू होता है !
और जब रूठ जाता है
तो सब अनर्थ हो जाता है !!
                                      ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'





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