ना जाना अखियों से दूर
मगर मैं आंखें खोलने से डरता हूँ !
करनी हैं तुझ से बातें हज़ार
मगर बोलने से डरता हूँ !
बेइन्तेहा करता हूँ तुझ से प्यार
मगर इज़हार करने से डरता हूँ !
नहीं छोड़ना चाहता तेरा साथ
मगर हाथ पकड़ने से डरता हूँ !
तेरे दिल में रहना चाहता हूँ
मगर पलकों से गिरने से डरता हूँ !
कहीं खोल न ले तू
मेरे दिल का रहस्यमयी पन्ना
इसलिए तेरी यादों के सूखे फूल
दिल के उस पन्ने में
रखने से डरता हूँ
अब क्या कहूँ ......
अपनी रब पे ऐतबार करने से डरता हूँ !!
..........मोहन सेठी 'इंतज़ार'
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