क्यों कहते हो अब दिल लगाने को
छोड़ आया हूँ कब से मैं हर बहाने को
हर शाम तेरी गली में घूमता हूँ
तेरी यादों के बबंडर से मिलके आने को
न गुल हैं.. न तू है.. न महक तेरी
गुलशन में आऊँ तो क्या होगी वजह मेरी
तेरी यादों के समन्दर में डूब जाता हूँ
अब तो सांसें भी लेना भूल जाता हूँ
एक बार तो बुलाया होता मुझ को
कभी ऐसे भी आज़माया होता मुझ को
मुमकिन है तुम रोयी होगी बिछुड़ के मुझ से
मैं तो रोने और हँसने में फ़र्क भूल जाता हूँ
मैंने तो सिर्फ़ तुझे अपना दिल दिखाया था
बता मैंने कब तेरा दिल दुखाया था
हर गम मैंने अपने ही दिल में छिपाया था
तुझको मैंने कब कोई शिकवा सुनाया था
जुदा न करना उसकी यादों के जख्म मेरे दिल से
मैं हर बार रब से ये ही दुआ क्यों मांग आता हूँ
......इंतज़ार
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