Wednesday, 2 December 2015

पत्थर बोलते नहीं हैं ........



सब कुछ सिखा दिया तूने
प्रेम के गीत
कुछ लिखना कुछ सुनाना
बस भूल गयी तू ये बताना  
कि पत्थर बोलते नहीं हैं  ........
 
वो रूप बदल लेते हैं
मुँह फेर लेते हैं 
जितना भी सुनाऊँ
मैं अपना फ़साना 
अनसुना कर देते हैं 
और मैं आदतन
फिर भूल जाता हूँ 
कि पत्थर बोलते नहीं हैं  ........

शायद दिल में कुछ भाव हों
या नये कुछ दाव हों
क्या दिल में है उस के
मुमकिन नहीं है
किसी रब को समझ पाना
मगर सीख रहा हूँ 
कि पत्थर बोलते नहीं हैं  ........
 
हर रोज़ तुझे ढूंढ़ना
और तेरा रेशम के पर्दों से
झांकना और छुप जाना
कभी हल्का सा मुस्कुराना
बता तो दे कि मंज़ूर है तुम्हें
वक़्त की हदों से पार तक जाना
मगर तुम क्या कहोगी 
बस मैं सीख रहा हूँ 
कि पत्थर बोलते नहीं हैं  ........
 
यूँ तो प्यार नहीं होता
लबों का लब से छू जाना
ज़रूरी नहीं होता
कुछ भी पा जाना
प्यार है दिल में
इक लौ जल जाना
बस देखना चाहता हूँ
तेरे लबों तक ख़ुशी का आना 
और तुम जानती हो
कि मैं सीख चुका हूँ 
कि पत्थर बोलते नहीं हैं  .........
                                                     ...... 'इंतज़ार' 

                                                
 

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