Saturday, 12 December 2015

ख़ुदकुशी..........




दिल में अक्सर
रात के अँधेरे
चुपके से घर कर लेते हैं
बस सिर्फ इक बुझती किरण
कहीं दूर से आती है
टिमटिमाती हुई .... थकी हुई
कभी कभी आँखों को छू जाती है
इन अंधी आँखों में
कुछ पल जीवन के सपने भर जाती है
और कभी अनजान राहों में
भटक जाती है
या शायद पहुंचना ही नहीं चाहती मुझ तक
बस एक बुझी सी उम्मीद
कभी कभी दर्द के दरिया से
उभर आती है
वो जो ईमारत थी
उसकी महक से लबालब
आज खंडहर होती जाती है
अजीब सी हालत है
इस दिल की
जीना तो चाहता है
मगर ख़ुदकुशी आसान नजर आती है

                                                ............इंतज़ार 
                           
 

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