Saturday, 19 December 2015

एक दिल किराये पे .............




उसने जब दिल से निकाला है
ना ठौर है ना ठिकाना है
अब एक दिल किराये का ढूंढ के लाना है
वर्ना इस दिल्ली की सर्दी में
रगों में हर एहसास जम जाना है

एक दिल ..... किराये पे
अगर आप के दिल में कमरा खाली है
बस कुछ दिन रहकर चला जाऊँगा
बिलकुल परेशाँ ना करूँगा
अब ये तो उम्मीद ही नहीं
कि दिल में हमेशा लिए बस जाऊँगा
आजकल ऐसे दिल कहाँ ढूंढ पाऊँगा
कुछ दिन ही सही
कुछ तो सकून पाउँगा
देखो ख़ाली करते वक़्त
साफ़ करके जाऊँगा
बिलकुल ना सताऊँगा
कोई निशान नहीं
कोई दाग ना लगाऊँगा
ना यादों का सामान छोड़ूंगा
बस जब तक रहूँगा
कुछ गीत गुनगुनाऊँगा
चाहो तो सुन लेना
यूँ तो इरादे नेक हैं मेरे
बस ये दिल बेचारा
बेघर होने से उखड़ा है
कुछ झूठे ख़्वाब दिखा कर
इसको बहलाऊँगा
फिर से मनाऊंगा
जो चाहे किराया तुम ले लो
शर्त जो भी हो मुझ से लिखा लो

मेरा तो एक कमरे का सपना है
जहाँ जाओ........ जिसे और रखो
बाकि का दिल तो आपका अपना है

                                      ..........इंतज़ार

                                       


 

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