Saturday, 8 August 2015

रखा क्या है ........


पीते रहे हम दरबदर सोचा ज़माने में रखा क्या है
तेरी आँखों से पी तो सोचा मैखाने में रखा क्या है !!

मुस्कुराते रहे दर्द-ओ-अलम पर हम उम्र तमाम
कांधे पे तेरे रोये तो सोचा मुस्कुराने में रखा क्या है !!

ग़ज़ल कहने को कलम भावनाओं में यूँ बह निकली
जब डूब ही गए तो सोचा बहर मिलाने में रखा क्या है !!

तुझ पर शायरी लिखने की सोचते रहे एक मुद्द्त से
सोचा काली सिहाई तेरे दिल पे लगाने में रखा क्या है !!

तेरे एहसासों की बारिश में भीगे हम कुछ इस तरहां
सोचा अब सावन की बारिश में नहाने में रखा क्या है !!

इस दुनियाँ की भीड़ में यूँ तो हरकोई शख्स तनहा है
तुझे तनहा देख सोचा महफ़िल सजाने में रखा क्या है !!

करना है अगर इश्क़ तो फिर आग में कूद कर देख
'इंतज़ार' ज़रा सोच दूर से दिल जलाने में रखा क्या है !!

                                                                ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'




No comments:

Post a Comment