भारत भाग्य विधाता
हर कोई है यहाँ खाता
आज़ादी में ...
आज़ादी से रिश्वत पाता
पकड़े गए तो
जेल से लौट कर
मुख्या मंत्री बना जाता
अंग्रेजों से आज़ादी मिली
मगर गुंडों का राज सताता
फिर तुम क्यूँ बिकते हो
जब समय चुनाव का आता
याद करो इस आज़ादी की ख़ातिर
किस किस ने जान गवाई
चंद सिक्कों और कम्बल में
आज़ादी को क्यूँ बेचते हो भाई
ना सोचो पार्टी की ना नेता ना भाई
सिर्फ़ सोचो देश की
देखो कितने बलिदानों से थी आज़ादी पाई
.............मोहन सेठी 'इंतज़ार'
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