बना के इंसान
भगवान भी रोया होगा
समंदरों ने खारा पानी तभी पाया होगा
आदमी के ज़ुल्म देखे होंगे औरत पर
सब जला कर तभी रेगिस्तान बनाया होगा
अपनी बनाई दुनियाँ से नाख़ुश होगा
दर्द पहाड़ों सा तभी उभर आया होगा
सहा नहीं गया दुःख इतना
पिघल गया बर्फ सा चैन उसका
पानी नदिओं सा आँखों से बहाया होगा
देख लालच इंसान के दिलोदिमाग में
सोना चांदी सब धरती में दबाया होगा
जंगल तो बनाये थे सब जीवों के लिये
ना पता था कि इंसान ने सब काट के
कंक्रीट का एक बड़ा शहर बनाया होगा
इसीलिए जलजला ला के ये गिराया होगा
हवा दी थी खुली साँसें लेने को
मगर क्या ख़बर थी उसे कि
इंसान ने इसमें भी ज़हर मिलाया होगा
रुकता नहीं इंसान
मंगल से भी आगे निकल चुका है ये
सावधान... भगवान जब इंसान को तेरे
असली घर का गृह मिल जायेगा
समझ जाना कि ये किसने
तेरे घर पहुँच ऐटम बम्ब चलाया होगा !!
........मोहन सेठी 'इंतज़ार'
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