जीवन चलाता तो भगवान है
क्या साईकिल सा है जीवन
साईकिल के दो पहिये
हैं दोनों बराबर
लेकिन महत्व बराबर है कहाँ
अगला पहिया आदमी
पिछला पहिया औरत
जंजीरों में औरत बंधी
दिशा बदले आदमी
जानो कौन मजबूर है
जीवन बैलगाड़ी सा क्यों नहीं
दोनों पहिये बराबर
महत्व बराबर
संतुलन निश्चित
चलाता तो फिर भी भगवान है
मगर औरत और आदमी
एक से इन्सान हैं
बच्चे बुढ़े घर बार
सुख दुःख का संसार
सब इसी गाड़ी पर सवार
दोनों पहिओं पर बराबर भार
तभी तो चले
अच्छे से संसार
........इंतज़ार
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