तेरे बिन पेड़ो ने
पतझड सी लगाई हुई है
फूलों ने भी न खिलने की
कसम खाई हुई है
भवरों ने तो गली में
आना ही छोड़ दिया है
यहाँ तक कि सूरज भी
निकलता नहीं आज कल
क्यों की बादलों ने
गम की झड़ी लगाई हुई है
मैं तो रोती रहती हूँ
घुटनों पर सर रख कर
न जाने क्यों
सारी कायनात ने
तेरे आने की आस लगाई हुई है
....इंतज़ार
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