क्यूँ अर्थी पे सोई है तू कोई समझाता नहीं मुझको
हाथ जोड़े पर तेरे साथ कोई सुलाता नहीं मुझको !
क्यूँ ताले लगा रखे हैं दुनियाँ वालों ने मुहँ पर
अब क्या हाल है तेरा कोई बताता नहीं मुझको !
रोज़ तेरी नीली आँखों में डूब जाया करता था
अब गहरा नीला समंदर भी डुबाता नहीं मुझको !
जिंदगी कटे जा रही थी बेख़बर तेरी वहशत में
अब कोई भी इंसा या बुत बहलाता नहीं मुझको !
हँसता हँसता उठ गया 'इंतज़ार' उसकी अर्थी से
कहता रहा अब कोई ज़ख्म रुलाता नहीं मुझको !!
........मोहन सेठी 'इंतज़ार'
हाथ जोड़े पर तेरे साथ कोई सुलाता नहीं मुझको !
अब क्या हाल है तेरा कोई बताता नहीं मुझको !
रोज़ तेरी नीली आँखों में डूब जाया करता था
अब गहरा नीला समंदर भी डुबाता नहीं मुझको !
जिंदगी कटे जा रही थी बेख़बर तेरी वहशत में
अब कोई भी इंसा या बुत बहलाता नहीं मुझको !
हँसता हँसता उठ गया 'इंतज़ार' उसकी अर्थी से
कहता रहा अब कोई ज़ख्म रुलाता नहीं मुझको !!
........मोहन सेठी 'इंतज़ार'
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