Tuesday, 20 October 2015
Monday, 19 October 2015
Saturday, 17 October 2015
तेरा क्या होगा कालिया .........
आज कल भारतवर्ष में बड़ी गरम हवायें चल रही हैं! कुछ लोग इसमें इंधन डाल रहे हैं और कुछ सेकने में लगे हैं! धर्म में तो जीव हत्या मना है! हिन्दू जैन सिख सभी तो कहते हैं कि जीव हत्या पाप है! लेकिन खाते हर धर्म के लोग हैं! मांस हो मुर्गा हो या मछली! अब गौ रक्षा राजनितिक मुद्दा है या फिर दिल से रोकना चाहते हैं! अब भारत में धर्म और जाती वाद इतना है कि आग लगाने के लिये दियासिलाई भी नहीं चाहिए! एक अफवाह उड़ा दो बस आग लगी समझो! कोन मारा गया किसको फ़िक्र है? "खाना छोड़ो या देश छोड़ो" अब धर्म के हिसाब से तो कोई भी मांस खाना मना है तो जो मांस खाये वो सब देश छोडें! जीव हत्या मना है लेकिन इंसान चलता है!
जब तक वोट सब मेरे हों ...
बिना सोचे समझे साहित्यकारों के बारे में उल्टा सीधा लिखना बंद करें! अपने राजनितिक अंध विश्वास पर निर्भर न रहें..... पहले देश की सोचें
जब तक वोट सब मेरे हों ...
बिना सोचे समझे साहित्यकारों के बारे में उल्टा सीधा लिखना बंद करें! अपने राजनितिक अंध विश्वास पर निर्भर न रहें..... पहले देश की सोचें
Thursday, 15 October 2015
Tuesday, 13 October 2015
Wednesday, 7 October 2015
कोई ज़ुल्फ़ों के साये में सुलाता नहीं मुझको.......
क्यूँ अर्थी पे सोई है तू कोई समझाता नहीं मुझको
हाथ जोड़े पर तेरे साथ कोई सुलाता नहीं मुझको !
क्यूँ ताले लगा रखे हैं दुनियाँ वालों ने मुहँ पर
अब क्या हाल है तेरा कोई बताता नहीं मुझको !
रोज़ तेरी नीली आँखों में डूब जाया करता था
अब गहरा नीला समंदर भी डुबाता नहीं मुझको !
जिंदगी कटे जा रही थी बेख़बर तेरी वहशत में
अब कोई भी इंसा या बुत बहलाता नहीं मुझको !
हँसता हँसता उठ गया 'इंतज़ार' उसकी अर्थी से
कहता रहा अब कोई ज़ख्म रुलाता नहीं मुझको !!
........मोहन सेठी 'इंतज़ार'
हाथ जोड़े पर तेरे साथ कोई सुलाता नहीं मुझको !
अब क्या हाल है तेरा कोई बताता नहीं मुझको !
रोज़ तेरी नीली आँखों में डूब जाया करता था
अब गहरा नीला समंदर भी डुबाता नहीं मुझको !
जिंदगी कटे जा रही थी बेख़बर तेरी वहशत में
अब कोई भी इंसा या बुत बहलाता नहीं मुझको !
हँसता हँसता उठ गया 'इंतज़ार' उसकी अर्थी से
कहता रहा अब कोई ज़ख्म रुलाता नहीं मुझको !!
........मोहन सेठी 'इंतज़ार'
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