Tuesday, 31 March 2015

हवा थम गई ........


ज़ुल्फ़ हवा में जो लहराई तेरी
तो ये हवा ही थम गई
पत्तिओं ने झिलमिलाना रोक
पूछा हवा से कि मामला क्या है ?
रुक गई कैसे ?
डालियाँ जो झुकीं थीं
क्यूँ झुकीं ही रह गयीं 
हवा ने कहा....कि थम यूँ गई   
इन ज़ुल्फ़ों की बदली में
एक चाँद नज़र आया है ....
जिसने ये कहर मुझपे ढाया है !
अब तू ही बता मैं भी क्या कहूँ...
तुम ज़ुल्फ़ें ना खुली यूँ छोड़ा करो
इस अदा से
सारी कायनात का ना दिल यूँ तोड़ा करो !!
                                        ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'



सुनो ........तृष्णा ........150331


Monday, 30 March 2015

धंधा ........


' खिड़की '  तक आओ
मेरी पीठ भी थपथपाओ
मैंने भी इन्टरनेट पर
नयी दुकान सजाई है
कुछ सैंपल चख़ कर तो जाओ !

बेशक "साधारण" ही लिखते जाओ
चलो अपना नाम भी न बताओ
बेनाम टिप्पणी करते जाओ
मुझे मेरे सामान का बयां मिलेगा
अच्छा नहीं है तो कुछ नया खिलेगा
दूकानदार हूँ.... जो चलता है वोही मिलेगा !

आना जरुर इंतजार रहेगा
नये दोस्त बनाने का दौर चलेगा
नहीं चली दूकान
तो ' क्लोजिंग डाउन ' की तख्ती लगा
सेल का ऐलान करूँगा
धंधा बदल कर कुछ नया करूँगा !

                     .....मोहन सेठी 'इंतज़ार'

सुनो ........मिलन की प्यास .....150330


Friday, 27 March 2015

डरता हूँ ........


ना जाना अखियों से दूर
मगर मैं आंखें खोलने से डरता हूँ !
करनी हैं तुझ से बातें हज़ार
मगर बोलने से डरता हूँ !
बेइन्तेहा करता हूँ तुझ से प्यार
मगर इज़हार करने से डरता हूँ !
नहीं छोड़ना चाहता तेरा साथ
मगर हाथ पकड़ने से डरता हूँ !
तेरे दिल में रहना चाहता हूँ
मगर पलकों से गिरने से डरता हूँ !
कहीं खोल न ले तू
मेरे दिल का रहस्यमयी पन्ना
इसलिए तेरी यादों के सूखे फूल
दिल के उस पन्ने में
रखने से डरता हूँ
अब क्या कहूँ ......
अपनी रब पे ऐतबार करने से डरता हूँ !!

                           ..........मोहन सेठी 'इंतज़ार'


Wednesday, 25 March 2015

गुल ........


गुल से है परेशां गुलिस्तां सारा
भंवरे से दिल लगाने की ज़िद उसकी नहीं गवारा
मगर गुल जानता है कि आज काँटों का साथ
फिर माली के हाथों किसी अंजान के साथ
गुलशन से बिदाई का मसला है सारा
बिछुड़ने का फिक्र नहीं उसको
कल का क्या.... आज तो जी लेने दो उसको
काट शाख़ से सब सूंघेंगे एक दिन
फिर अगले दिन मसल डालेंगे ये उसको

भंवरा तो रोज़ आ कर चूमता है
मंडराता है चारो तरफ लुभाता है उसको
अपनी गुंजन के गीत सुनाता है
और सुबह फिर मिलने का वादा दे जाता है उसको
क्या गुनाह हुआ है गुल से
गर भंवरे से दिल लगाने की ज़िद लगाई है
क्यों गुलिस्तां में बगावत उठ आयी है
जैसे चाहे जी लेने दो उसको

ऐ गुलिस्तां.....
यहाँ तो सबके कटने की बारी आयी है
मगर ये बात सिर्फ़ गुल को समझ आयी है !!

                                     ........Mohan Sethi 'इंतज़ार'



Tuesday, 24 March 2015

हीरा ........OBO पर



हर हीरा किसी हसीना के
गले का हार नहीं बनता !
हर हसीना के गले को
हीरों का हार नहीं मिलता !

कई हीरे ज़मी में दबे रहते हैं
कोयलों की गोद में
सोये पड़े रहते हैं !
उनको तराशने वालों का
औजार नहीं मिलता !

न कमी हसीना के हुस्न में है
न हीरों की गुणवत्ता में !
बस किस्मत के खेल हैं सारे
किसी को वोह मिल जाते हैं
और हमें प्यार नहीं मिलता !!

                              ........Mohan Sethi 'इंतज़ार'


Wednesday, 18 March 2015

पल पल ........(OBO पर प्रकाशित)


पल पल मुझ से रूठा है
हर पल यूँ तो झूठा है
सच और झूठ का ताना बाना
जीवन का रूप अनूठा है
इक पल में वो अपने दीखे
दो पल में कई सपने दीखे
कुछ पल में सब बिखर गये
यूँ साथ हमारा छूटा है
क्या पल पल मुझसे रूठा है
या जग सारा ये झूठा है

मैं दीया हूँ तू बाती है
दुनिया क्यूँ तुझे जलाती है
मुझ पे भी कालिख़ आती है
प्यार के झोंके जब
आग बुझाने आते हैं
बेदर्द नहीं सह पाते हैं
हाथ बढ़ा ढक लेते हैं
आग को और भड़काते हैं
क्या जग सारा ये झूठा है ?
या... पल पल मुझसे रूठा है

                          ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'     




सुनो ........150318


Monday, 16 March 2015

आम लोग ........

एक धारा के प्रवाह में सब बह रहे हैं
कौन हिम्मत करे रुख मोड़ने का
कौन साहस करे पर्वत तोड़ने का !
तिमिर भी सहनीय है जब सबको           (तिमिर=अँधेरा)
तिमिरारि बनने की चाह फिर किसको !   (तिमिरारि=सूर्य )
खिल-खिला रहे हैं सब ऊपर ऊपर
दर्द से टूटे जा रहे हैं सब भीतर भीतर !
कौन ललकारे इन रावणों को !
राम की राह तकते तकते !
सब सो रहे हैं जगते जगते !
ध्यान से देखो ...सब रो रहे हैं
इस धारा के प्रवाह में बहते बहते !!
                                     ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'

सुनो ........150316


Wednesday, 11 March 2015

सुनो ........150311


दर्द ........

जिंदगी बसर कर लेते हैं
कभी आकाश तो कभी पाताल
का सफ़र कर लेते हैं
हर दिन यूँहीं
नहीं निकल जाता
कभी जिंदा दिली का
तो कभी जिंदा मुर्दों का
अभिनय कर लेते हैं
कभी अपने
तो कभी दूसरों के दर्द
दर्द करते हैं... !

मोती हम तो
आंख में रोक देते हैं
वर्ना ये तो दिल का
दरिया सोख लेते हैं !
सीख रहा हूँ
पहाड़ के नीचे
लोग कैसे जिंदगी तमाम
बसर कर लेते हैं
सड़क पे जन्मे
सड़क पे पले
सड़क पे जिन्दगी
तमाम कर लेते हैं
पिछले जन्म का फल बता
धर्म और समाज इन्हें शांत कर देते हैं
हर अन्याय को भाग्य बता
अपने पाप माफ़ कर लेते हैं !
मगर जब कुछ ना सूझे
तो प्रभु की ईच्छा
कह कर टाल देते हैं !!
                                ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'





Saturday, 7 March 2015

मेंढक........


मैं तो मेंढक था
जिसको वक़्त ने श्राप दे
कुवें में धकेल दिया था
एक दिन एक राजकुमारी आयी
और मुझ से बहुत बातें की
ना जाने उसको क्या हुआ
कि उसने इश्क़ का इज़हार किया
और मैं बन गया राजकुमार फिर से
और उड़न छू हुआ वक़्त का श्राप !
मगर मेरी कहानी कुछ फ़र्क रही
एक दिन राजकुमारी ने क्रोध में
अपने प्यार का वादा वापस माँगा
और मैं उसे मना ना कर सका
फिर वक़्त के श्राप में घिर बैठा
बन गया फिर से एक मेंढक
और उसने मुझे
उसी कुवें में धकेल दिया
और निकल पड़ी
एक और कुवें की ख़ोज में !

बड़ी चीज़ है इश्क  'इंतज़ार' !
जब होता है...
तो जादू होता है !
और जब रूठ जाता है
तो सब अनर्थ हो जाता है !!
                                      ........मोहन सेठी 'इंतज़ार'





सुनो ........150307